हिंदी गजल
मै एक पथिक हूँ आवारा मुझको शकून चाहिये
मै एक सिपाही जोश भरा मुझको जुनून चाहिये
जिसको पढ़ रक्त खौल उठे आवेशित हो अंतर्मन
मुझको बस इस जीवन में वही मजनून चाहिये
हो सबका अधिकार बराबर और साथ हो कर्म
आज इस देश में बस यही एक कानून चाहिये
बरसे निर्झर प्यार निरन्तर जी के हर कोने में
हर वक्त इस धरा पर अब वही मानसून चाहिये
खिलखिलाता रूप और हो मन मोहता अंतःकरण
जिन्दगी की दुर्गम राह में वह पुण्य प्रसून चाहिये
ईमान और गैरत से मिल जाय जो प्रसाद स्वरुप
"राजीव"जीवन निर्वहन को रोटी दो जून चाहिये
राजीव रंजन मिश्र
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