हिंदी गजल १
है मुफलिसी का आज कल ये हाल दोस्तों
कि जिंदगी खुद ब खुद है बेहाल दोस्तों
ना हमने की कोशिश ना वो पहल किये
दिखता नहीं बदलता सूरतेहाल दोस्तों
बिकती है इंसानियत सिक्कों के खातिर
लेकिन भला अब किसे है मलाल दोस्तों
शिकवे शिकायतों का है दौर चल परा
भार वहन करें सो कहाँ सवाल दोस्तों
ऐ काश! कि सम्हल जाएँ वक्त के रहते
बच रहें हादसात से बाल-बाल दोस्तों
मिलें है बामुश्किले जन्नत की पेशकश
आओ रखें इसे शिद्दत से सम्हाल दोस्तों
'राजीव' जाने फिर ये मिले ना मिले हमें
मौके का करे बेहतर इस्तेमाल दोस्तों
राजीव रंजन मिश्र
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