आबु यौ बाबु भैया,बैस क करी कनिक विचार
सब गोटे छी बाप-भाई ,सबके अछि धिक्कार
नारी शोषण,दहेज़ प्रथाक करैत छी सब प्रतिकार
मुदा मोन स छोड़य ला,नहि छी क्यउ तैय्यार
काल्हि तक छल समस्या,आइ बनल संघाती प्रहार
आबहूँ नै जौं डाँर कसब त,भ जायत सबहक संहार
बेटी बेर में मोछ झुकौने,बेटा काल में धनुषटंकार
कथनी-करनी में भेद मिटा क,करी उचित व्यवहार
आबहूँ नै जौं हम-अहाँ सचेतलौं,त भ जैब लाचार
आबु संकल्पित भ क,दहेज़ दानवक करी निस्तार
बेटी के मानी समकक्ष आ दी बेटा सन अधिकार
नारी शिक्षा के मोल बुझी आ करी एकर विस्तार
नहि जानि कहाँ चलि गेल,मिथिला-मैथिलिक संस्कार
जनकलली केर जन्म-भूमि पर बेटी भ गेल अछि भार
मिथिलेशक प्रण के मोन पारि,राखी यैह भाष-नियार
मोनक राखल शिव-धनु जे तोड़ता तिनके देबैन गलहार
राजीव रंजन मिश्र
१५.०६.२०१२
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