ममता से भरी आँखे,
वह स्नेह भरा स्पर्श!
दुनिया में अपने आप में,
है प्रेम का उत्कर्ष!
खुद भूखे रहकर,
जो बच्चे को खिलाती!
गिले बिस्तर में लेटकर,
जो बच्चे को सुलाती!
रातों को जागकर,
जो लोरी सुनाती!
मत भूलो मेरेदोस्तों,
वो 'माँ' है कहलाती!
सिने में अपने गम लिये,
हर जख्म सह जाते!
बाजू में अपने दम लिये,
जो हर बोझ उठाते!
बच्चों के वास्ते,
जो पसीना है बहाते!
मत भूलो मेरे दोस्तों,
वो है 'बाप' कहलाते!
पर,बच्चे जब बढ़कर,
अपने औकात में आते!
अपने बच्चों के प्रति,
अपना हर फ़र्ज़ निभाते!
पर याद नहीं रह जाती उन्हें,
कि कुछ और भी हैं नाते!
जिनका न कोई मांग है,
और है भी तो सुने नहीं जाते!
निश्छल हो निःस्वार्थ जीने वाले,
माँ-बाप कभी कुछ भी नहीं पाते!
पर,बेफिक्री से जीने वाले,
भला यह भूल क्यों जाते!
कि वही बच्चे बड़े होकर,
निर्ममता की इतिहास दुहराते!
राजीव रंजन मिश्र
२१.०३.२०१२