गजल-९३
ओना हमरा सभक समय धरि त' कोनो दिन विशेष नै होएत छल ककरो नामे,तहन जँ किनको नामे कोनो दिन विशेष समर्पित कएल जाए त' कोनो बेजाए गप्प सेहो नै। अजुका दिन फेसबुक पर संगीक नामे समर्पित देखि किछु फुरा गेल आ प्रेषित अछि अपने लोकनिक सोझा हमर ई गजल जे हम पहिने सरल वार्णिक बहरमे कहने रही आ भाब कँ निश्चित रूपे वएह राखि अरबी बहरमे कहल दोबारासँ,स्नेहाकांक्षी रहब अपने सभ मित्रबंधु आ सुधिजनक :
दैवक देल बड पइघ उपहार छैक सखा
मोनक लेल अनमोल रखवार छैक सखा
भागक जोरगर अहाँ सरकार बाउ तखन
जीवनकेर सभ दुखक कर्णधार छैक सखा
बड् दुर्गम बनल बुझब सम्बंध राखि चलब
नै सभ हालमे जँ टेरनिहार छैक सखा
मोनक कारि संग धएने जँ बाट रहब
सभ दिनकेर बुझि रहब बटमार छैक सखा
छुछ्छो आस राखए नित जे एकसरे
जानब जे संग रहितो दुर्गमार छैक सखा
सभ होएत कैल धैलक हिसाब सखा
राखल नेत सुध त' अपरम्पार छैक सखा
सखाक पीर आप सन राजीव मानि रहब
मोनक बात बुझि क' टा उद्धार छैक सखा
२२२१ २१२ २२१ २११२
@ राजीव रंजन मिश्र