गजल- ९७
जन गनसँ चलल अछि खेल केहन ई
हिय हारि रहल दुख देल केहन ई
हिय हारि रहल दुख देल केहन ई
देशक त' कहब की हाल यौ बाबू
सोनाकँ चिरै छल भेल केहन ई
सोनाकँ चिरै छल भेल केहन ई
जकरेसँ लगौलक आस से तोड़ल
घर घरकँ जरेलक तेल केहन ई
घर घरकँ जरेलक तेल केहन ई
दुरभाग कही बा भोग छी करमक
नित ओलि सधा सभ गेल केहन ई
नित ओलि सधा सभ गेल केहन ई
राजीव करेजक पीर के मेटत
रक्षकसँ पिचाँसक मेल केहन ई
रक्षकसँ पिचाँसक मेल केहन ई
२२१ १२२ २१२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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