Friday, May 31, 2013


गजल-६६ 

घुरि ताकि जौँ देखबत' तरि जैत ई जगती
गहि हाथ जौँ पकरब हहरि जैत ई जगती 

ई आँखि मे हिरनीक सन डूबि जे भाँसत 
दिन राति ओ बिसरत बिसरि जैत ई जगती

दू पाँति ई ठोढकत' जनि गीत आ कविता
हँसि गाबि जौँ थिरकबत' गरि जैत ई जगती 

मधु मास छै मिठगरत' अहि रूप के चलते
सभ हारि जौं भेटत नमरि जैत ई जगती 

कहि गेल जे मोनकत' बकलेल ने बूझब 
लखि रूप ई नेहकत' ढरि जैत ई जगती 
221 2221 221 222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, May 30, 2013


गजल-६५ 

बीतल कालक मधुर याद मे ससरि रहल अछि ई जीवन
मातल मोनक मकर जाल मे हहरि रहल अछि ई जीवन

जानत के आ रहल जानि के दसो दिसा मे औ बाबू
कंकर पाथर भरल बाट मे लसरि रहल अछि ई जीवन

कौखन हरियर लदल गाछ ई मरल परल कखनो मुरझा
सींचल करमक कलम बाध मे चतरि रहल अछि ई जीवन

बुझनुक जीतल सदति खेल ई खहरि मरल नित छल बुरिबक
कोने कोने नगर गाम मे हकरि रहल अछि ई जीवन

बूझत के आ सुनत बात के अपन अपन थिक सोचब यौ   
बीछल बाँछल बचल गाछ मे मजरि रहल अछि ई जीवन 

2222 12212 1212 2222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, May 26, 2013


गजल- ६४ 

चारि देबालक घेरल टा ने घर कहाबै छै
मोन मेजाजक मारल जे से झर कहाबै छै 

मोन मोताबिक चाहल आ नित रहल मातल
लोक एहनसन आजुक अहिबक फर कहाबै छै 

काज ने देलक ककरो कहियो रहिकँ जे समरथ 
साज पेटारक छारल उस्सर चर कहाबै छै 

बान्ह ने बान्हल सोचल ने छाँटल नबाबी नित 
सैह  यौ बाबू अपने मोने सर कहाबै छै  

नेत "राजीव"क उलझब ने धरि सत सदति भाखब 
लाज लेहाजक मारल निरसल खर कहाबै छै 

२१२२२ २२२२ २१२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र  




भाब वैह जे भाब जतादै 
भाब मोन मे तान जगाबै  


भाब कोन ने रूप सजाबै
भाब मोन आ प्राण जगादै 


भाब व्याकरण मान बढ़ाबै
भाब श्लोक मे बात समादै 


भाब भक्ति थिक ज्ञान कि जानै
भक्ति भाब मिलि त्रानि दियादै 


भाब आँखि बिनु ग्यान सजग धरि
भाब ग्यान बनि दीप जराबै 


भाब मनकँ सभ बात कहै नित
ग्यान बाट चलि धूम मचाबै 


ज्ञान व्याकरण भक्ति नकारल
ज्ञान भाब मे पाँखि लगादै


ज्ञान भक्ति मे भाब कि राखल
ज्ञान कष्ट नित हाँकि बजाबै 


ग्यान राखि बड जीव कि बाँचल
भक्ति भाब लग आबि क' हारै


ज्ञान भक्ति जौँ संग जुटलतौँ
मान नाम आ दाम दियाबै 


भक्ति ज्ञान बिनु खूब निमाहल
ज्ञान भाब बिनु सुन्न कहाबै 


ज्ञान भक्ति मे भेद कहाँ किछु
ज्ञान भक्ति मिलि धाक जमाबै 


ज्ञान दंभ सन बोध दियाबै
भाब छम्य थिक ज्ञान क्षमादै 


ज्ञान भाब सह दैव कृपा छी
भक्ति ज्ञान सह तेज जगाबै


ज्ञान भक्ति बैकुंठक' रूपक
छोड़लकत' इहलोक कहाबै 


भाब चाहि हे दैव गुरू सुनु
भाब ज्ञान मिलि मोन जुराबै 


चाह भक्ति बिनु ज्ञान मुदा नै
मोन ज्ञान बिनु भक्ति नकारै 


२१२१ २२१ १२२ 
@ राजीब रंजन मिश्र  

Saturday, May 25, 2013


गजल - ६३ 

बहकल जगती अछि झूठ बात मे 
लुधकल पिपरी अछि पात पात मे 

फटफट बाजथि बड चौक बाट पर 
छिटकल काजुक खन धार कात मे 

ने घर आंगन छल सम्हरल अपन 
लागल छल सदिखन जीत मात मे 

ततबे धरि गप ने बाउ भाइ सभ
पसरल दुर्गुण नब जन्म जात मे 

खहरल "राजीव"क सोच बानि नित 
सिमटल लाजे छल गात गात मे  

२२२२ २२१ २१२ 

@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, May 24, 2013


गजल-६२ 

दुख नित करमक अपन फसल होइ छै
सुख नित सबहक गुथल गनल होइ छै

कखनो बुझलक जरब मरब के ककर
दुख बस अपने बढ़ल चढ़ल होइ छै 

बदरी खन खन घुमरि घुमरि ने झरै
चानो नितदिन घटल बढल होइ छै 

मुहँगर कनगर भचर भचर टा करै
बुझला कथमपि कि गप गरल होइ छै  

काजे सभदिन सभक रहल संग नित
करनी बकबक उचित कहल होइ छै 

क्यौ ने जनलक ढरत कखन दैव जे
अहिठाँ करतब सभक सकल होइ छै 

बुधि बल "राजीव" जौं रहल संग टा  
तखने धरनिक मनुख कमल होइ छै 

२२२२  १२१२  २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, May 23, 2013



गजल- ६१ 

हमर जिनगी अहिँक छी लेलहुँ अबधारि अबियौ ने 
जरल छै हिय खहरि सदिखन दिय' परतारि अबियौ ने

फुलेलै फूल सगरो धरि घर आंगनत' गमकल ने 
अहिँक आसे सजौने छी सभ सहयारि अबियौ ने
 
कखन धरि सभ रहब सूतल दुनियाँ चान पर पहुँचल 
उठू सरकार जागू आ मन खहयारि अबियौ ने

मधुर सन बोल रखने छी बैसल बाट जोहय छी
झमेलौं नित अहिँक खातिर कनि झटकारि अबियौ ने

चलत ने आब ई जिनगी अहि तरहेत' यौ बाबू
लए "राजीव" तन मन धन सभ नर नारि अबियौ ने

१२२२ १२२ २२२२१ २२२ 
@राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, May 21, 2013


गजल-६०

बुझि जेतय ई जगती सगरो अपना मे जीवट राखबत'
झुकि एतय यौ सुरुजो चन्ना समटल जौं भाभट राखबत'

इतिहासक जौं खाता देखब सभटा बुझबा मे आओत 
खुलि मानब बस करनीये टा गहना छै जौं रट राखबत'

मानब ने गप कहबी कखनो अपने टा धुन मे नित गैब 
चलि देतय जग पाछू पाछू करतब जौं चित पट राखबत'

खाहियारल ई गप टा बुझि राखब धरि यौ बाबू सरकार
बुरियायब जौं कथनी बड आ करनी मे भांगट राखबत' 

"राजीव"क ला अनढन सनहक सभटा ई चिकरब दिन राति 
किछु भेटत ने कतबो कैने किरिया जौं धरकट राखबत'

२२२२ २२२२ २२२ २२२२१

@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, May 16, 2013


गजल-५९ 

किछु बात खटकिये जाइ छै
हिय बीच अटकिये जाइ छै 

जिनगीक रमनगर बाट मे
किछु सोच भटकिये जाइ छै

किछु काल झमारै खोभ धरि
सभ कष्ट सटकिये जाइ छै

दियमान निमाहै दैव जौं
सभ आँखि मटकिये जाइ छै 

"राजीव" बुझै छी यैह टा
कमजोर चटकिये जाइ छै 

२२१ १२२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, May 15, 2013


जानकी गीत 

माँ जानकीक जनमदिन घर घर मे हम मनाबी
सभ मिलि ख़ुशी मनाबी अ-क्षत दीप हम जराबी 
माँ जानकीक जनमदिन...........

मिथिला जिनक छल नैहर,मैथिल अपन छलथि यौ
हम मैथिलक धरम बुझि,करतब अपन पुराबी 
माँ जानकीक जनमदिन...........

मिथिलेशनंदनी छथि सदति ममताक रूप सुन्नर
चललीह जे बाट सत्तक हम गीत हुनक नित गाबी 
माँ जानकीक जनमदिन...........

धियाक रूपे गुनगर,भार्याक रूपे लुरिगर
दुहि कुलकँ लाज रखलीह गहि मान हम बढाबी
माँ जानकीक जनमदिन...........

हे माए हम छी बुरिबक,महिमा ने जानि सकलहुँ
रही ने आब निरसल नब रूप धए देखाबी 
माँ जानकीक जनमदिन...........



"राजीव" यैह बिनबैथ,जग जननि जानकीसँ
मैथिलकँ ज्ञान जागय,इतिहास पुनि रचाबी 
माँ जानकीक जनमदिन...........

@ राजीव रंजन मिश्र

Sunday, May 12, 2013


गजल-५८ 
ओनात' हमरा सभक मिथिला मे संस्कार किछु एहन भेटल अछि भगवानक कृपासँ जे सभ दिन माए-बाप आ गुरुजनक होइत अछि आ रहैत अछि मुदा समकालीन समाजकँ देखैत किछु फुरैल आ नब ढंगसँ माए प्रति अपन स्नेह आ आदरक भाब रखैत माए लेल अपना हाथे केक/सुखैल हलुआ बनेलहूँ,अहि ठाम ई बतैब कनी जरूरी बुझना जा रहल अछि जे हमर माए-बाबू बाहरक किछु ने ग्रहण करैत छैथ,अपन सोच आ विस्वास। 
संगहि किछु मोनक भाबकँ,एक गजलक रूप में अपने लोकनिक सोंझा परिस रहल छीजेहन सल भेल होइक मुदा छी दुनू हमर भाब आ आत्मीयतासँ भरल,कनी चीख लेब से आग्रह:


माए सदति अनमोल लगैत छथि
मिठगर अमृत सन बोल बजैत छथि

सदिखन सहल सभ बात कचोट ने
गाए बनल अहलाद बँटैत छथि

मोनक अपन सभ बात दबौवलथि
सन्तान लै सुख चैन रचैत छथि

दमसब हुनक नित बाट सुझैत टा 
बिहुँसथि मनुख जे नेह करैत छथि 

माए सुनर उपहार सनेश थिक
खनहन रहथि "राजीव" रटैत छथि 

२२१२ २२१ १२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, May 10, 2013


गजल -५७ 

हम ने चाहल जे अहाँकँ' भुलबी हम 
आ ने चाहल जे अहाँकँ' दुखबी हम 

हम ई मानब जे कमीत' हमरे मे 
धरि ने हहरी से नहाक' बिनबी हम 

दुख ने कनिको भेल हारि सभटा धरि  
छी जे हारल ने हहाक' जनबी हम 

नेहक मारल छी अहींकँ' सदिखन टा 
हम ई मानी से मनाक' बुझबी हम  

जगती जानय आ अकाश कहतइ ई 
नित जे लीखल से अहाँकँ' चढ़बी हम  

२२२२ २१२१ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र  

Tuesday, May 7, 2013


गजल-५६  

जगतीक हाल देखू भसियैल जा रहल अछि 
चहुँ कात लोक बाबू दमसैल जा रहल अछि 

पलखैत आब कनिको रहलैक ने मनुख लग 
दिन राति लागि टाका तहियैल जा रहल अछि 

निकहाक कोन मोजर अधलाह बड पियरगर 
कागतकँ फूल देखू गमकैल जा रहल अछि 

बाजबत' कान काटत चुपचाप पीठ ठोकू 
बस मान दान खातिर पजियैल जा रहल अछि 

किछु लोक छैथ मातल निजगुतकँ ठानि बैसल 
नोनेसँ दालि करगर बरकैल जा रहल अछि 

जे जैह बाट धैलक अगुऐल पुनि घुरल ने 
लौटयकँ बात छोड़ू कतियैल जा रहल अछि  

"राजीव" आनि राखू जुनि मोंछ टा पिजाबू 
सरकार आब जागू धकियैल जा रहल अछि 

२२१ २१२२ २२१ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

 

Sunday, May 5, 2013

गजल 
हुनक शर्तक ने कोनो जबाब छल
दुखक गर्तक ने कोनो हिसाब छल

हमहुँ देखल बड दुनियाँ जहाँन यौ
कतहुँ छोऱल ने कोनो किताब छल

बनल एहन गति जीबति लहास सन 
सनक मोनक जे ई बेहिसाब छल

सुखक एक्कहि टा कारण बनल छलथि
मधुर बोली जे बिहुँसल गुलाब छल

छलय कानल "राजीव"क विचार बल
बसल नैनन मे रावी चिनाब छल
1222 222 1212

@ राजीव रंजन मिश्र

गजल-५५

ताँतल सैकत सन मोन जरल छल
जाँतल पैरक सन बोल दबल छल

मानल ने हम कखनोत' अलग सन
गाछक हरियर सभ पात झड़ल छल

जीलहुँ जीबट पर माथ उठा धरि
लागल टूटल सन शीशमहल छल

फूलक शैय्या तजि काँट चुनल हम
जानल सुमिरल बिख बाट चलल छल

मातल लोकक लखि चालि चलन छवि
"राजीव"क टप टप नोर खसल छल

2222 221 122

@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, May 3, 2013


गजल-५४

ई मोनक तार छूअल के
आ चैनक नींद तोड़ल के 

छै पुनमक चान पसरल धरि
ईजोरक धार मोड़ल के 

ने गैलहुँ गीत कोनो हम
मधुगर झंकार छेड़ल के 

कोना रहि ठाढ़ जीयब हम
दुःख दर्दक खाधि कोड़ल के 

"राजीव"क हाल मूइल सन
अधमारल आइ छोड़ल के 

२२२२१ २२२ 

@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, May 1, 2013


गजल-५३ 

हम मैथिल छी सबसँ पहिने,तकर बाद किछु आन छी
वेद पुराणक मुहें बखानल,हमरा लोकनिक मान छी

हिमालयक तलहट्टी हमरे आ हमरे अछि बाबा धाम
हमरे बागमती कोशी गंडक,कमला बुढ़िया बलान छी


याज्ञवलक्य आ चन्दा हमर,हमरे विद्यापति आ मंडन
गौतम कणाद आर नागार्जुन हमरे वंशज महान छी 


पश्चिम चंपारणसँ जामतारा,किशनगंज आ शेखपुरा
बिहार,झारखण्ड,नेपाल मे पसरल हमर सीमान छी


लह-लह करैत माटि हमर,भरल गहुम आ धानसँ
घर-घर फैलल हमर मिथिलाक चीज़ पान-मखान छी 


हम बाढि झेलल,भूकंप सहल आ रौदी में खूब तपल
तैय्यो सक्कत डाँरक' ठाढ़ रहल,भेल ने झूरझमान छी

रंजू गेली जान गँवा कए,हम यैह आब ठानल मोनसँ 
झग़ड़ू-बिमल-सुरेशक व्यर्थ ने करबाक बलिदान छी 

बड्ड रहल ठुकराओल हम,आब आर ने चुप बैसब
"राजीव"कहैथ नेतागणसँ,छोड़ू बुझब हम अज्ञान छी


(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-22)  
@राजीव रंजन मिश्र