गजल- ६१
हमर जिनगी अहिँक छी लेलहुँ अबधारि अबियौ ने
जरल छै हिय खहरि सदिखन दिय' परतारि अबियौ ने
जरल छै हिय खहरि सदिखन दिय' परतारि अबियौ ने
फुलेलै फूल सगरो धरि घर आंगनत' गमकल ने
अहिँक आसे सजौने छी सभ सहयारि अबियौ ने
अहिँक आसे सजौने छी सभ सहयारि अबियौ ने
कखन धरि सभ रहब सूतल दुनियाँ चान पर पहुँचल
उठू सरकार जागू आ मन खहयारि अबियौ ने
उठू सरकार जागू आ मन खहयारि अबियौ ने
मधुर सन बोल रखने छी बैसल बाट जोहय छी
झमेलौं नित अहिँक खातिर कनि झटकारि अबियौ ने
झमेलौं नित अहिँक खातिर कनि झटकारि अबियौ ने
चलत ने आब ई जिनगी अहि तरहेत' यौ बाबू
लए "राजीव" तन मन धन सभ नर नारि अबियौ ने
लए "राजीव" तन मन धन सभ नर नारि अबियौ ने
१२२२ १२२ २२२२१ २२२
@राजीव रंजन मिश्र
@राजीव रंजन मिश्र
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