गजल-५८
ओनात' हमरा सभक मिथिला मे संस्कार किछु एहन भेटल अछि भगवानक कृपासँ जे सभ दिन माए-बाप आ गुरुजनक होइत अछि आ रहैत अछि मुदा समकालीन समाजकँ देखैत किछु फुरैल आ नब ढंगसँ माए प्रति अपन स्नेह आ आदरक भाब रखैत माए लेल अपना हाथे केक/सुखैल हलुआ बनेलहूँ,अहि ठाम ई बतैब कनी जरूरी बुझना जा रहल अछि जे हमर माए-बाबू बाहरक किछु ने ग्रहण करैत छैथ,अपन सोच आ विस्वास।
संगहि किछु मोनक भाबकँ,एक गजलक रूप में अपने लोकनिक सोंझा परिस रहल छीजेहन सल भेल होइक मुदा छी दुनू हमर भाब आ आत्मीयतासँ भरल,कनी चीख लेब से आग्रह:
माए सदति अनमोल लगैत छथि
मिठगर अमृत सन बोल बजैत छथि
मिठगर अमृत सन बोल बजैत छथि
सदिखन सहल सभ बात कचोट ने
गाए बनल अहलाद बँटैत छथि
गाए बनल अहलाद बँटैत छथि
मोनक अपन सभ बात दबौवलथि
सन्तान लै सुख चैन रचैत छथि
सन्तान लै सुख चैन रचैत छथि
दमसब हुनक नित बाट सुझैत टा
बिहुँसथि मनुख जे नेह करैत छथि
माए सुनर उपहार सनेश थिक
खनहन रहथि "राजीव" रटैत छथि
२२१२ २२१ १२१२
@ राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment