गजल - ६३
लुधकल पिपरी अछि पात पात मे
फटफट बाजथि बड चौक बाट पर
छिटकल काजुक खन धार कात मे
ने घर आंगन छल सम्हरल अपन
लागल छल सदिखन जीत मात मे
ततबे धरि गप ने बाउ भाइ सभ
पसरल दुर्गुण नब जन्म जात मे
खहरल "राजीव"क सोच बानि नित
सिमटल लाजे छल गात गात मे
२२२२ २२१ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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