गजल-५९
किछु बात खटकिये जाइ छै
हिय बीच अटकिये जाइ छै
हिय बीच अटकिये जाइ छै
जिनगीक रमनगर बाट मे
किछु सोच भटकिये जाइ छै
किछु सोच भटकिये जाइ छै
किछु काल झमारै खोभ धरि
सभ कष्ट सटकिये जाइ छै
सभ कष्ट सटकिये जाइ छै
दियमान निमाहै दैव जौं
सभ आँखि मटकिये जाइ छै
सभ आँखि मटकिये जाइ छै
"राजीव" बुझै छी यैह टा
कमजोर चटकिये जाइ छै
कमजोर चटकिये जाइ छै
२२१ १२२ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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