Monday, December 30, 2013

गजल-१६१ 

जगतकेँ नब रूप देखितहुँ
सहत जे से भूप देखितहुँ

फटकि फेकति दोष सभकँ से
सहज गुनगर सूप देखितहुँ

पियाबित नित नेह नीर से
भरल मिठगर कूप देखितहुँ

जहाजक सन तेज चालि आ
तनल हिय मस्तूप देखितहुँ

बहुत नै राजीव थोरबो
नवल नित प्रारूप देखितहुँ

122 221 212
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, December 29, 2013

गजल-१६० 

गोपी उद्धव सम्बाद पर एक गोट गजल :

सखि हे टान उठल ई केहन 
डाहल मोन सिझल ई केहन 

के पतिया क' सुनत बूझत गप 
माधब प्राण हतल ई केहन 

हिय बेचैन दरस नै भेटल 
ब्रज तजि श्याम रहल ई केहन
 
निष्ठुर साफ़कँ बिसरल सभकेँ 
गाँछल बात नटल ई केहन 

हिय राजीव हकासल सन आ 
आँखिक निन्न उड़ल ई केहन 

२२२१ १२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र

Tuesday, December 24, 2013

गजल-१५९ 

जखने दुनिया किछो गलत कहतै
तखने आंगुर तुरत सचर उठतै

किछुओ ठानब त' फेर थम्हने रहब
ठानल लोके त' किछु गजब गढ़तै

बोलक टाँसी रहत जँ कम तहने
नेहक पुरबा मधुर सरस बहतै

लागल रहलासँ जोहमे अनुखन
भन्ने देरीसँ धरि अबस लहतै

कतबो राजीव दाबि राखब धरि
झंडा सतकेँ शिखर चढल रहतै 

२२२ २१२ १२२२  
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, December 22, 2013

गजल-१५८
आजुक दिन मैथिलीकेँ संविधानक अष्टम सूचिमे स्थान भेटल छल तैं एकर पालन अधिकार दिवसकेँ रूप में करैत छी हम सभ,किछु फुराएल आ टंकित काएल गेल,प्रेषित अछि माँ मैथिलिक सेवामे,ज्ञानी गुनी जन आ मित्र बंधु लोकनिक स्नेहाकान्क्षी रहब :
भीख नै अधिकार चाही 
आब नै किछु आर चाही 

आउ नबतुरिया अहाँकेँ 
बुधि बलक हथियार चाही 

कर्मेकेँ मोजर करी आ 
जुल्मकेँ प्रतिकार चाही 

नित रहथि संगे बनल ओ  
बूढ़केँ सत्कार चाही  

मांग सभटा ठीक छै धरि 
संग आ सरियार चाही 

चानपर छी जा चुकल तैं 
चानकेँ किछु पार चाही 

मोनकेँ दमका दए से 
रस भरल रसधार चाही 

मैथिलीकेँ मान हो आ 
मायकेँ मनुहार चाही 

छी रहब मैथिल सदति बस 
यैह टा गलहार चाही 

जागि ई मिथिला चुकल अछि
हिय भरल अंगार चाही 

ली शपथ राजीव आबू
माथ परका चार चाही 

२१२ २२१ २२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, December 21, 2013

गजल-१५७ 

फुफकार कम मारू 
किछु काजकेँ बाजू 

अपना कमी खातिर  
अनका त' नै दाबू 

हद भेल यौ आबो  
सोचू अपन बाबू 

बस टांग झिकला पर 
अनकर बढब आगू 

राजीव संगे मिलि 
इतिहास नब रचाबू 

२२१ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्रा 

Friday, December 20, 2013

गजल-१५६ 

पाँचो आंगुर नै समान होइछ कहियो
कहबी डाकक नै पुरान होइछ कहियो


देखल अन्हरिया रातिमे उगल दिनकर बा
दुपहरियामे भेँट चान होइछ कहियो


मोजर सदिखन एकमात्र करनीटाकेँ
अनढन भखला पर कि मान होइछ कहियो


कतबो अरजब नोचि नाचि से कम्मे धरि
विज्ञ लोकक नै सिमान होइछ कहियो


निक मनुखक राजीव एक टा पहिचान जे 
कथमपि छाती नै उतान होइछ कहियो


2222 2121 2222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, December 18, 2013

गजल-१५५ 

गाछीमे आम नै फरए छैक
गामो नै गाम ओ लगए छैक 

चूल्हा चेकी बखाड़ी जाँतक त'
नामे सुनि कानकेँ मलए छैक 

की देखब हाल नबतुरियाकेर
नेन्ना भुटका जाममे मतए छैक 

मीता बहिना त' पुरना गप भेल
अपनेमे लोककेँ बझए छैक 

बोली बिसरल अपन माएकेर
अलगे किछु टोनमे बजए छैक

बजने चढि बढिकँ मोजर भेटत कि
ककरो क्यउ आब नै सहए छैक

बाँचल मिथिला शहरमे राजीव
गामेमे मैथिली झखए छैक
२२२ २१२ २२२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, December 16, 2013

गजल-१५४ 

एक झोंका पवनकेँ गुजरि गेल देखू
मोन मारल सिनेहक सिहरि गेल देखू

कान सुनलक जँ किछुओ हुनक बोल नेहक
सोह बिसरल उचाटे नमरि गेल देखू

चानकेँ आसमे छल चकोरक नजरि धरि
राति कारी अमावस पसरि गेल देखू 

के बुझत बात डाहल हदासल हियाकें
गाछ रोपल सवाँरल झखरि गेल देखू  

बाट जोहब सदति बस बनल भाग टा तैं
नोर राजीव नैनक टघरि गेल देखू 

२१२२ १२२ १२२१ २२ 
@ राजीव रंजन मिश्र

Friday, December 13, 2013

गजल-१५३ 

हियक अहलादकेँ फुसियाएब मोसकिल छल
सुनल सभ बातकेँ बिसराएब मोसकिल छल 

उगल छल चान जे पूनमकेर रातिमे ओ
तकर मारल हियक सरियाएब मोसकिल छल 

सलटि लेलहुँ जगतकेँ सहजेसँ नित मुदा बस
बढल अनुरागकेँ अनठाएब मोसकिल छल

गुलाबक फूलसन जगती खुब बिहुँसलए धरि
भरल मधुमासमे मुसकाएब मोसकिल छल 
  
बड़ा राजीव छल ललसा दौग मारएकेँ 
झटकि धरि डेग नित चलि पाएब मोसकिल छल 

१२२ २१२ २२२१ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, December 11, 2013

गजल-१५२ 

बस मान खातिर नै बजबाक चाही कखनो
हिय तोड़ि लोकक नै चलबाक चाही कखनो

बाजब त' बाजू छाती ठोकि सत टा सदिखन
बेकार फुइसक नै हकबाक चाही कखनो 

जे बेश हल्लुक बुझना गेल देखति माँतर
से बाट चटदनि नै धरबाक चाही कखनो 

नै ऊक बिनु फूकक छजलै ग' ककरो से बुझि
बुधि ज्ञान सहजे नै तजबाक चाही कखनो 

राजीव अलगे करमक धाह आ चमकी तैं
कुटिचालि कथमपि नै रचबाक चाही कखनो 

२२१ २२२ २२१ २२२२   
@ राजीव रंजन मिश्र

Sunday, December 8, 2013

गजल-१५१ 

आब आर कि पार हेतए 
ताकि ताकि शिकार हेतए 

छद्म भेष धरत त' फेर ओ 
दोहराकँ बिमार हेतए 

राज धर्म कठिन त' बाट धरि 
एक ठाम कछार हेतए  

एक बेर जँ हूसि गेल से 
शेर फेर सियार हेतए  

सोच नीक जँ लोक बेदकेँ 
दूर हारि बिकार हेतए  

रंग भेद सफल कखन रहल 
लोकतंत्र लचार हेतए 

सोच यैह रहत सदति हमर 
वीरकेर श्रिंगार हेतए  

बाट घाट चलब त' सीख ली 
जीत जैब कि हार हेतए  

२१२१ १२१ २१२ 

@ राजीव रंजन मिश्र  

Saturday, December 7, 2013

भक्ति गजल-७ 

आइ वियाहपंचमी पर अपने लोकनिक सोँझ प्रेषित अछि हमर ई अकिंचन भाब चेष्टा,माँ मैथिलीकँ सेवामे :



चलू सखि देखि आबी सभ सुनर छवि राम सीताकेँ
जनकपुर धाम अछि सजल बढल दियमान मिथिलाकेँ

सुनयना आइ बिलखएथि दुल्हा रामकेँ लखि लखि
विरल जोड़ी जनकललीक अवधपति राम ललनाकेँ 

धिया सुकुमारि छथि भरल पुरल गुण ज्ञानकेँ अनुपम
लला रघुवर सरल हियक मुदा संज्ञान दुनियाकेँ 


बराती रूप गुण भरल मनोहर साज सज्जित सभ
जनक राजा हुलसिकँ बेश जोड़थि हाथ पहुनाकेँ 

सिनुरदानक निरखिकँ छवि मगन राजीव तिरपित बड़
धरथि नब रूप बानि ओहने धिया फेरोसँ मिथिलाकेँ 

122 2121 2122 21222

@ राजीव रंजन मिश्र

Friday, December 6, 2013

समस्त मित्र मंडलिक अगाध सिनेह आ उत्साहवर्द्धनकेँ बले आइ एक सए पचासम गजल प्रेषित अछि अपने लोकनिक सोँझा,स्नेहाकांक्षी रहब अपने लोकनिक सुझाब आ विचारक :

गजल-१५० 

नै हिन्दूकेँ आ नै मुसलमानकेँ हेतए 
छल बुधियारक आ फेर बुधियारकेँ हेतए 

ओ दिन फेरो देखत ग' ऐ माटिकेँ लोक यौ 
चप्पा चप्पामे राज सुख शानकेँ हेतए 

जखने राखब यौ भाइ लोकनि बचल होशटा 
मोजर तहने नै चोर गद्दारकेँ हेतए 

मन्दिर मस्जिद रोड़ा बनत नै अपन बाटकेँ 
ओ बस मानक भगवान अल्लाहकेँ हेतए 

जानब सभदिन राजीव विस्वास बड़ पैघ गप 
सरिपहुँ देखब टा जीत हकदारकेँ हेतए

२२२२ २२१२ २१२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्रा 

Sunday, December 1, 2013

गजल-१४९ 

आइ हमरा लोकनिक संस्था मिथिला सेवा समिति चैरिटेबल ट्रस्ट दिसिसँ रक्तदान शिविरक आयोजन कएल गेल छल,नीक जकाँ संपन्न भेल। विद्यापति भवन (आयोजन स्थल)मे बैसल बैसल किछु निकलि गेल,प्रेषित अछि अपने लोकनिक सोंझा किछु छायाचित्रक संग.… हमर विनम्र निवेदन सभ मित्र बन्धुसँ जे फूजल हियसँ सुविधा हिसाबे नियमित रूपसँ शोणित दान करी,हमरा सभक देलहा खून ककरो जान बचा सकैत अछि :  

रक्तदान सन दान नै किछु थिक
ऐसँ पैघ कल्याण नै किछु थिक


दाइ माय यौ भाइ एकर सन
धर्म आर बढि आन नै किछु थिक 


लागि जाय शोणित जँ ककरोमे
मोन चैन नुकसान नै किछु थिक


बेर काल सभ ठाम गोहारब
देब खूनसे भान नै किछु थिक


दोग कोन राजीव नै भागू
देह चोरिमे मान नै किछु थिक


2121 221 222
राजीव रंजन मिश्र