गजल-१६१
जगतकेँ नब रूप देखितहुँ
सहत जे से भूप देखितहुँ
सहत जे से भूप देखितहुँ
फटकि फेकति दोष सभकँ से
सहज गुनगर सूप देखितहुँ
पियाबित नित नेह नीर से
भरल मिठगर कूप देखितहुँ
जहाजक सन तेज चालि आ
तनल हिय मस्तूप देखितहुँ
बहुत नै राजीव थोरबो
नवल नित प्रारूप देखितहुँ
122 221 212
@ राजीव रंजन मिश्र