गजल-१५२
बस मान खातिर नै बजबाक चाही कखनो
हिय तोड़ि लोकक नै चलबाक चाही कखनो
हिय तोड़ि लोकक नै चलबाक चाही कखनो
बाजब त' बाजू छाती ठोकि सत टा सदिखन
बेकार फुइसक नै हकबाक चाही कखनो
बेकार फुइसक नै हकबाक चाही कखनो
जे बेश हल्लुक बुझना गेल देखति माँतर
से बाट चटदनि नै धरबाक चाही कखनो
से बाट चटदनि नै धरबाक चाही कखनो
नै ऊक बिनु फूकक छजलै ग' ककरो से बुझि
बुधि ज्ञान सहजे नै तजबाक चाही कखनो
बुधि ज्ञान सहजे नै तजबाक चाही कखनो
राजीव अलगे करमक धाह आ चमकी तैं
कुटिचालि कथमपि नै रचबाक चाही कखनो
कुटिचालि कथमपि नै रचबाक चाही कखनो
२२१ २२२ २२१ २२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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