गजल-१६०
गोपी उद्धव सम्बाद पर एक गोट गजल :
डाहल मोन सिझल ई केहन
के पतिया क' सुनत बूझत गप
माधब प्राण हतल ई केहन
हिय बेचैन दरस नै भेटल
ब्रज तजि श्याम रहल ई केहन
निष्ठुर साफ़कँ बिसरल सभकेँ
गाँछल बात नटल ई केहन
हिय राजीव हकासल सन आ
आँखिक निन्न उड़ल ई केहन
२२२१ १२ २२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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