गजल-१५८
आजुक दिन मैथिलीकेँ संविधानक अष्टम सूचिमे स्थान भेटल छल तैं एकर पालन अधिकार दिवसकेँ रूप में करैत छी हम सभ,किछु फुराएल आ टंकित काएल गेल,प्रेषित अछि माँ मैथिलिक सेवामे,ज्ञानी गुनी जन आ मित्र बंधु लोकनिक स्नेहाकान्क्षी रहब :
भीख नै अधिकार चाही
आब नै किछु आर चाही
आउ नबतुरिया अहाँकेँ
बुधि बलक हथियार चाही
कर्मेकेँ मोजर करी आ
जुल्मकेँ प्रतिकार चाही
नित रहथि संगे बनल ओ
बूढ़केँ सत्कार चाही
मांग सभटा ठीक छै धरि
संग आ सरियार चाही
चानपर छी जा चुकल तैं
चानकेँ किछु पार चाही
मोनकेँ दमका दए से
रस भरल रसधार चाही
मैथिलीकेँ मान हो आ
मायकेँ मनुहार चाही
छी रहब मैथिल सदति बस
यैह टा गलहार चाही
जागि ई मिथिला चुकल अछि
हिय भरल अंगार चाही
ली शपथ राजीव आबू
माथ परका चार चाही
२१२ २२१ २२
@ राजीव रंजन मिश्र
आजुक दिन मैथिलीकेँ संविधानक अष्टम सूचिमे स्थान भेटल छल तैं एकर पालन अधिकार दिवसकेँ रूप में करैत छी हम सभ,किछु फुराएल आ टंकित काएल गेल,प्रेषित अछि माँ मैथिलिक सेवामे,ज्ञानी गुनी जन आ मित्र बंधु लोकनिक स्नेहाकान्क्षी रहब :
भीख नै अधिकार चाही
आब नै किछु आर चाही
आउ नबतुरिया अहाँकेँ
बुधि बलक हथियार चाही
कर्मेकेँ मोजर करी आ
जुल्मकेँ प्रतिकार चाही
नित रहथि संगे बनल ओ
बूढ़केँ सत्कार चाही
मांग सभटा ठीक छै धरि
संग आ सरियार चाही
चानपर छी जा चुकल तैं
चानकेँ किछु पार चाही
मोनकेँ दमका दए से
रस भरल रसधार चाही
मैथिलीकेँ मान हो आ
मायकेँ मनुहार चाही
छी रहब मैथिल सदति बस
यैह टा गलहार चाही
जागि ई मिथिला चुकल अछि
हिय भरल अंगार चाही
ली शपथ राजीव आबू
माथ परका चार चाही
२१२ २२१ २२
@ राजीव रंजन मिश्र
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