Thursday, January 30, 2014

गजल- १७९ 

बात करत सभ दुनिया भरिकँ 
आस भरोसक पथिया भरि कँ 

चान तरेगन अपने ठाम 
काज इजोरक डिबिया भरि कँ 

बोल वचन सभ मिठगर खूब 
तीत अकत धरि किरिया भरि कँ

घाम पसीना नेहक झूठ 
मोल किदन किछु मिसिया भरि कँ 

धर्म करम बस नामक चौल  
फूल प्रसादी अढ़िया भरि कँ 

भेल उताहुल जग राजीव 
दौगि रहल घुसकुनिया भरि कँ 

२११२ २२२ २१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, January 28, 2014

गजल-१७८

ककरो मजा तँ क्यौ मरि रहल बेबसीसँ
मुसकी सजल वयन लऱि रहल जिन्दगीसँ

देलक ग' चैन ककरा जगतकेँ रिवाज
छाती जुड़ा रहल सभ भने मसखरीसँ

पाटिदार छल बनल जे मठाधीशकेर
चोला बदलि रहल ओ कुशल बानगीसँ 

विस्वास किछु बचल नै प्रजातंत्रमे तँ
धरना खसा रहल ओ धमा चौकड़ीसँ  

लीखत कतेक लेखक समाजक खिधांश
कागत कमे पड़त नित सजग लेखनीसँ 

सकदम पड़ल नगर गाम राजीव दुखसँ 
धरि घूमि फिरि रहल किछु सजल पालकीसँ 

2212 122 122 121
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, January 27, 2014

गजल-१७७ 

गणतंत्रमे तंत्र नै बस टोककेँ गोली चलल 
अनका सिरे दोष सभटा बेश झिकझोड़ी चलल 

की स्वप्न छल हाथमे की पूछि टा देखल जखन 
मुस्की लगा मोन डाहल छोड़ि निर्मोही चलल 

दिन भरि लगा खूब नारा देशकेँ हम मान दी 
रतुका पहर सोझ लोकक नोचि ओ बोटी चलल 

नव संविधानक गठन खगता सरासर आइकेँ 
बरषों बरष खेल खेलल काज नै बोली चलल 

राजीव धरना खसा नित राजपथ पर लाभ नै 
किछु नव करी साफ़ मोने खूब गलथोथी चलल 

२२१२ २१२२ २१२ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, January 25, 2014

गजल-१७६ 

ई भारत देश छी प्राण अपन
थिक देशक शानमे शान अपन

धरनी ब्रम्हांडमे साख जकर
तै माटिक मान टा मान अपन 

सभतरि सभ गाबए गीत मुदा
मदमातल कोयलिक गान अपन 

किछु सीखह आबि तौं गेह हमर
तत मिठगर बोल जे आन अपन 

छी पसरल दोग आ कोन सगर
धरि काजक काजमे ध्यान अपन 

नै बाजब बेश नै आँखि सहब
मर्यादा केर अछि भान अपन 

उनटा  इतिहास भूगोल सभक
हम देखल ऊँच दोकान अपन 

जय जय राजीव भारतकँ कहब
अछि सदिखन एतबे तान अपन 

222 212 2112
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, January 24, 2014

गजल-१७५ 

मोन कहुँना मना लेब हम फेरसँ
राति गुम सुम बिता लेब हम फेरसँ 

अछि बरल नेह बाती कहब मीत त'
फूकि सभटा मिझा लेब हम फेरसँ 

गीत नेहक रुचल नै तखन हारि क'
दुख गजल गुनगुना लेब हम फेरसँ

चान चढ़िते हिया दाबि सूतब ग' कि
घोंट दू गो चढ़ा लेब हम फेरसँ 

नै सुनत हाक राजीव ओ आब जँ
चुप मुँहें घुरि विदा लेब हम फेरसँ 
  
२१२२ १२२१ २२११ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, January 23, 2014

बितलाहा काल्हि हमर जन्मदिन छल,जेठ-श्रेष्ट,बंधु-बांधव,सखा समांग,हीत-मीत लोकनिक बड़ बेश शुभकामना पाबि भाब विह्वल भेल छी,व्यक्तिगत रूपेँ सभक धनबाद ज्ञापन नै करएत किछु मोनसँ निकलल आखरकेँ मार्फत हम समस्त लोकनिकँ आभार जतेबाक चेष्टा कएल,सभ गोटे स्वीकार करी से विनम्र आग्रह हमर :

मधुर सनेस भेटल काल्हि बेश थोकमे
हजार दीप नेहक बारि गेल मोनमे

सखा पठा सिनेहक ढेर रास कामना
अगाध जोश भरलथि बन्धु पोर पोरमे

सजा हमर दिवसकेँ गेल बोल सोन सन 
कृतग्य भेल हम श्रीमान पूर्ण सोहमे 

भटकि रहल छलहुँ अन्हारमे झमा झमा
अपार शान्ति भेटल आइ मीत कोंढ़मे

नमन हमर करी स्वीकार जेठ श्रेष्ठगण
सदेह हाथ जोड़ल ठाढ़ हम इजोरमे 

विशेष आर की राजीव किछु सखा कहू
मिठाइ धन्यबादक बोरि देल बोलमे 

सभ गोटेकेँ हार्दिक धन्यबाद !!
राजीव रंजन मिश्र 
121 2122 2121 212

Wednesday, January 22, 2014

गजल-१७४ 

सूरज पूरब उगबे करत
चन्ना घटबे बढ़बे करत 

सत्ते गप थिक ई ओतबे  
जनमल जे से मरबे करत 

काबिल बुधिकेँ रखलक सचर  
सनकल बहकल बुरबे करत 

पैघक छोटक टा मान जे 
राखत से धरि जितबे करत 

बरसाती बेंगक काज की 
पड़िते बुन्नी बजबे करत 

आइग फूसक सम्बंध टा 
स्त्री पुरुषक नित रहबे करत 

मानब ई राजीवकेँ 
पापक घइल फुटबे करत 

२२२२ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, January 20, 2014

गजल -१७३ 

नेह भरल मोन डाहल होइ छैक
भाब सिनेहक पियासल होइ छैक

आन त' बदनाम झुट्ठो बात लेल  
लोक अपनकेर मारल होइ छैक 

चाह सदति काल चातककेँ त' एक
ठोप गगनकेर बादल होइ छैक 

त्यागि चलल मोह माया जे सएह
वीर त' किछु एक गानल होइ छैक 

जानि पऱल यैह टा ऐ ठाम रूप
नाम अधिक काल साजल होइ छैक

दोष त' राजीव सदिखन निरविवाद
सोंझ मनुखकेर मानल होइ छैक
२११२ २१२२ २१२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, January 17, 2014

आन दिनक अपेक्षा आइ कनी सबेर-सकाल आँखि फुजि गेल,जाड़क किरदानी देखि किछु फुरा गेल,प्रेषित अछि अपने लोकनिक सोंझा :
गजल-१७२ 

हाड़ कँपकपा रहल अछि जाड़ 
देह कनकना रहल अछि जाड़ 

ठाढ़ भेल डाँर कसने दोमि 
टांग थरथरा रहल अछि जाड़ 

बस गरीब आ अमीरी देख 
बोल बड़बड़ा रहल अछि जाड़ 

साज बाज टोप चादर देखि 
माथ धड़ खसा रहल अछि जाड़
 
कैथरी लदल मनुखकेँ पाबि 
दाँत कटकटा रहल अछि जाड़ 

हाल की कहू अपन राजीव 
मोन चटपटा रहल अछि जाड़ 

२१२ १२१२ २२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, January 16, 2014

गजल-१७१ 

दिन कहुना काटि लेलहुँ राति भारी भ' गेल
कछ्मच्छी फेर मोनक आइ हाबी भ' गेल 

कोनो चीजक कखन ऐ ठाम भेटल ग' दाम
अनढनकेँ सोझ लोकक हाथ कारी भ' गेल

ललसा छल संग भेटित चारि टा लोककेर
धरि सभ क्यौ पेट खातिर कामकाजी भ' गेल 

ककरा के हाथ जोड़त आ कि आशीष देत
रहि अपने शानमे सभ खानदानी भ' गेल 

अजगुत राजीव ऐ ठा रीत सभटा जगतकँ
बड़ बजने भोथ लोकक वाहवाही भ' गेल 

२२२ २१२२ २१२२ १२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, January 15, 2014

गजल-१७० 

कखनोकँ मोन सहकि जाइ छै
अनढनकँ  लेल सनकि जाइ छै

जे साँझ भोर रहल गुम सदति
सेहो त' लोक चहकि जाइ छै

ई नेह चीज त' थिक एहने
भेटल कि डाँर लचकि जाइ छै

बड जे कठोर करम बानिकेँ
तकरो त' हाथ झड़कि जाइ छै

राजीव ई त' बुझल बात थिक
चानन पसरि क' गमकि जाइ छै 

221 2112 212
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, January 14, 2014

गजल-१६९ 

काटि मनुख जिबिते छागरकेँ
स्नान करत गंगासागरकेँ


दोष सदति ताकत गामक धरि
बानि अपन झरकल बागरकेँ 


आब बहत के तीला चाउर
पेट खगल सभकेँ गागरकेँ 


चान चकोरक जोड़ी लाजे
देखि रहल हिय सौदागरकेँ 


मोन अकछि खहड़ल राजीवक
एक भरोसा नटनागरकेँ 

2112  22 222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, January 13, 2014

गजल-१६८ 

आँखि आँखिमे सभटा कहि गेल
बात बातमे जुलमी गहि गेल

नैन बाणकेँ मारुक खंजरसँ
मोन प्राण अधमारल रहि गेल 

पल उठा क' देखल ओ जखने त'
विश्वमित्र देबालो ढहि गेल

औ नयन कमानक सर बेधलसँ   
वीर हारि टा सगरो महि गेल

नेह धारमे डूबल राजीव
भोर साँझ सभ तारन सहि गेल 

२१२१ २२२ २२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, January 11, 2014

गजल-१६७

जिनगी जतरा छै मानि चलल हम
पोथी पतरा नै गानि रहल हम

देखल ककरो नै चाँकि कनिकबो
डाहल मोनक निज आप जरल हम

कनकन ठंढीमे ठिठुरल महि धरि 
नेहक धधरा ने तापि सकल हम

टोकल ककरो नै गाम नगर बस
नै झूकल आ नै कात हटल हम 

धरनी ज्ञानक थिक स्वर्णकलश बुझि
ठोपे ठोपे बुरिलेल चखल हम 

गुमसुम अपनामे राजीव पड़ल नित
कबिलाहाकेँ कुटिचालि गमल हम 

२२२२ २२१ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, January 10, 2014

गजल-१६६ 

थाकल जे मरि गेल जगतमे
भेटत की फुसियाहि बहसमे 

की जीतल आ हारि चलल की
जानल के ई बात सहजमे

डाहब सदिखन मोन अपन टा
मतलब ककरा गाम नगरमे

दुनियाकेँ ई खेल पुरनगर
लचरल बुरिबक बीच भँवरमे

करमक सभ राजीव नतीजा
ककरो नै लहि गेल अचकमे

२२२ २२१ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, January 8, 2014

गजल-१६५ 

सभ लागल रही साल बीतैत रहल 
बिलमल नै कनी साल बीतैत रहल 

अछि झोँका चलल प्रश्नकेँ एक सए
भेटल की कथी साल बीतैत रहल

बस देखा क' चलि गेल सपने त' बुझू 
जनि सुन्नरि परी साल बीतैत रहल 

अछि शुरुआत पुनि देह मरदनसँ धियक 
टूटल नै कड़ी साल बीतैत रहल

आबो व्यर्थ नै होइ राजीव समय 
नबका किछु करी साल बीतैत रहल  

222 1221 22112 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, January 7, 2014

गजल-१६४ 

मनुख माल जालकेँ लजा देलक 
छिया डेग डेग पर घिना देलक 

कुकरमी त' भेल पातकी देखू 
सहकि नाक कान सभ कटा देलक 

सजा फेर एक नारि हेबाकें 
सहल ओ धिया हिया कना देलक  

चलल खेल धरि लहास पर सेहो 
सगर राजनीति सभ चला देलक

जँ राजीव आब बानि नै बदलल  
बुझब व्यर्थ प्राण ई धिया देलक 

१२२१ २१२ १२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, January 1, 2014

गजल-१६३ 

मरजादाक भान रखने मान होइ छैक सदिखन 
निकहा लेल संग अनका आन होइ छैक सदिखन  

इतिहासक उनटि जँ पन्ना लिअ' त' यैह टा कहत जे
रहने नीक दल सफल कप्तान होइ छैक सदिखन 

गप बाजब अमेरिकाकेँ नीक थिक खराब नै धरि
काजक लोककेँ अपन खरिहान होइ छैक सदिखन 

नेता आचरणसँ निज आदर्श श्रेष्ठ भेल तहने
दुनियामे तकर यशक गुनगान होइ छैक सदिखन

बुझि राजीव गेल करतब आ सिमान अपन से
मनुखक रूपमे पुनमकेँ चान होइ छैक सदिखन

२२२१ २१२२ २१२१ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र  
गजल-१६२ 

अंग्रेजी नववर्षक जोश खरोशसँ भरल अवसर पर समस्त मिथिला मैथिल,जेठ श्रेष्ट आ सखा बंधू लोकनिकेँ सादर आ सस्नेह हार्दिक शुभकामनाक संग प्रेषित अछि हमर ई गजल अपने ज्ञानी गुनी जनकेँ सोँझा :

अपन संग होइक बस सभ हालमे 
नवल सोच होइक ऐ नब सालमे 

चलू फेर सभ गोटे मिलि जाइ आ 
खिला दी कमल सगरो महि थालमे 
 
बदलि लेब दुनियाकेँ अपनेसँ हम
रहत फेर तागत नै जंजालमे  

समयकेँ त कोसब वीरक बानि नै 
बड़ी शान सौरभ छै सुरतालमे 

सखा यैह राजीवक शुभकामना 
रही स्वस्थ सुधिगर सभ सभकालमे 

१२२१ २२२ २२१२ 

@ राजीव रंजन मिश्र