गजल-१७५
मोन कहुँना मना लेब हम फेरसँ
राति गुम सुम बिता लेब हम फेरसँ
राति गुम सुम बिता लेब हम फेरसँ
अछि बरल नेह बाती कहब मीत त'
फूकि सभटा मिझा लेब हम फेरसँ
फूकि सभटा मिझा लेब हम फेरसँ
गीत नेहक रुचल नै तखन हारि क'
दुख गजल गुनगुना लेब हम फेरसँ
दुख गजल गुनगुना लेब हम फेरसँ
चान चढ़िते हिया दाबि सूतब ग' कि
घोंट दू गो चढ़ा लेब हम फेरसँ
घोंट दू गो चढ़ा लेब हम फेरसँ
नै सुनत हाक राजीव ओ आब जँ
चुप मुँहें घुरि विदा लेब हम फेरसँ
चुप मुँहें घुरि विदा लेब हम फेरसँ
२१२२ १२२१ २२११
@ राजीव रंजन मिश्र
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