गजल-१७७
अनका सिरे दोष सभटा बेश झिकझोड़ी चलल
की स्वप्न छल हाथमे की पूछि टा देखल जखन
मुस्की लगा मोन डाहल छोड़ि निर्मोही चलल
दिन भरि लगा खूब नारा देशकेँ हम मान दी
रतुका पहर सोझ लोकक नोचि ओ बोटी चलल
नव संविधानक गठन खगता सरासर आइकेँ
बरषों बरष खेल खेलल काज नै बोली चलल
राजीव धरना खसा नित राजपथ पर लाभ नै
किछु नव करी साफ़ मोने खूब गलथोथी चलल
२२१२ २१२२ २१२ २२१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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