गजल-१५४
एक झोंका पवनकेँ गुजरि गेल देखू
मोन मारल सिनेहक सिहरि गेल देखू
मोन मारल सिनेहक सिहरि गेल देखू
कान सुनलक जँ किछुओ हुनक बोल नेहक
सोह बिसरल उचाटे नमरि गेल देखू
सोह बिसरल उचाटे नमरि गेल देखू
चानकेँ आसमे छल चकोरक नजरि धरि
राति कारी अमावस पसरि गेल देखू
राति कारी अमावस पसरि गेल देखू
के बुझत बात डाहल हदासल हियाकें
गाछ रोपल सवाँरल झखरि गेल देखू
गाछ रोपल सवाँरल झखरि गेल देखू
बाट जोहब सदति बस बनल भाग टा तैं
नोर राजीव नैनक टघरि गेल देखू
नोर राजीव नैनक टघरि गेल देखू
२१२२ १२२ १२२१ २२
@ राजीव रंजन मिश्र
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