गजल -५७
आ ने चाहल जे अहाँकँ' दुखबी हम
हम ई मानब जे कमीत' हमरे मे
धरि ने हहरी से नहाक' बिनबी हम
दुख ने कनिको भेल हारि सभटा धरि
छी जे हारल ने हहाक' जनबी हम
नेहक मारल छी अहींकँ' सदिखन टा
हम ई मानी से मनाक' बुझबी हम
जगती जानय आ अकाश कहतइ ई
नित जे लीखल से अहाँकँ' चढ़बी हम
२२२२ २१२१ २२२
@ राजीव रंजन मिश्र
बड नीक गजल ।
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