गजल-६२
दुख नित करमक अपन फसल होइ छै
सुख नित सबहक गुथल गनल होइ छै
सुख नित सबहक गुथल गनल होइ छै
कखनो बुझलक जरब मरब के ककर
दुख बस अपने बढ़ल चढ़ल होइ छै
दुख बस अपने बढ़ल चढ़ल होइ छै
बदरी खन खन घुमरि घुमरि ने झरै
चानो नितदिन घटल बढल होइ छै
चानो नितदिन घटल बढल होइ छै
मुहँगर कनगर भचर भचर टा करै
बुझला कथमपि कि गप गरल होइ छै
बुझला कथमपि कि गप गरल होइ छै
काजे सभदिन सभक रहल संग नित
करनी बकबक उचित कहल होइ छै
करनी बकबक उचित कहल होइ छै
क्यौ ने जनलक ढरत कखन दैव जे
अहिठाँ करतब सभक सकल होइ छै
अहिठाँ करतब सभक सकल होइ छै
बुधि बल "राजीव" जौं रहल संग टा
तखने धरनिक मनुख कमल होइ छै
२२२२ १२१२ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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