आओ अभिमन्यु! पुकार रहा,
फिर से, तुमको यह युद्धस्थल!
फैला है,हर कदम-कदम पर,
मकड़-जाल सा मायावी रिपु दल!!
अर्जुन का तीर और गदा भीम की,
हो दिग्भ्रमित! शांत पड़ा है निश्चल!!
सुन सको अगर तुम उस पुकार को,
तो होगा विदीर्ण हृदयस्थल!!
हर ओर मची है मार-काट,
पी रहा है मानव हालाहल!
हो रही छीण है आशाएं,
अति पीड़ित है ये धरातल!!
आओ, हे शूरवीर!
फिर एक बार,चक्रव्यूह भेदन को!
पर,सीख अवश्य तुम लेना,
अब पूर्ण रूप से छेदन को!!
और,ध्यान रहे इस बार ओ प्यारे,
कि,साथ रहे कल-बल और छल!
आओ,अभिमन्यु! पुकार रहा,
फिर से, तुमको यह युद्धस्थल!!
---राजीव रंजन मिश्र
१४.०३.२०१२
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