करते-करते ना जाने,वो क्या कर गये!
कहते-कहते ना जाने,वो क्या कह गये!
हमने तो उनको, कभी भी परखा नहीं!
जुल्मो-सितम उनके ,बाखुदा सह गये!!
वो घिरे थे चापलूसों से कुछ इस कदर,
कि सारे वादे-वफ़ा पल भर में ढह गये!!
यूँ तो हमने जी तोड़ कोशिश की मगर,
हमारे जज्बात सारे धरे के धरे रह गये!!
वो इस हद तक ऊँचा उठने की जिद में थे,
कि,सरे आम कुचे में बेआबरू रह गये!!
राजीव रंजन मिश्र
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