गजल (७७)
ओना त हम सबके संग छलन्हूँ
मनुक्खक चालि देखि दंग छलन्हूँ
बीतल जे मोन पर कोना कहू से
सोचि सोचि हमहूँ तंग छलन्हूँ
बात करैथि सभ आगू बढ़य के
काज देखि मुदा बदरंग छलन्हूँ
चमकल चाँद इजोरियाक राति
देखि हमहूँ मस्त मलंग छलन्हूँ
नामक मोहे जुटल छल सभ क्यौ
हारि हमहूँ भेल बेढंग छलन्हूँ
बड्ड चाहल सम्हारि चली मुदा
बुझि पड़ल नंग धरंग छलन्हूँ
राजीव नियारि भासि कैल सभटा
सुनय पड़ल जे दबंग छलन्हूँ
सरल वार्णिक बहर
वर्ण-१३
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