Saturday, November 17, 2012


जिसने सारा संसार बनाया, 
जिसने फूलों को महकाया !
जिसने तारों को है सजाया,
जिसने यह सारा खेल रचाया!
जग के उस सृजनहार को,
हो कृतज्ञ हम नमन करें! 

जिसने सूरज को गर्मी दी,
और चंदा को शीतलता! 
जिसने ग्रीष्म में तपीश भरी,
और बसंत में मादकता! 
जग के उस सृजनहार को,
हो कृतज्ञ हम नमन करें! 

जिसने पर्वत को दी ऊँचाई, 
और सागर को गहराई! 
जिसके सत्ता के आगे,
ना कभी किसी की चल पाई! 
जग के उस सृजनहार को,
हो कृतज्ञ हम नमन करें !  

जिसने पेड़ों को फल-फूल से लादा,
नदियों-झड़नो में पानी डाला!
सीमारहित धरातल पर जो, 
है विविध रंग भरने वाला !
जग के उस सृजनहार को,
हो कृतज्ञ हम नमन करें! 

जिसके मर्जी के आगे, 
नहीं किसी की चल पाये!
जिसके बिना इशारे के,
पत्ता भी ना हिल पाये!
जग के उस सृजनहार को,
हो कृतज्ञ हम नमन करें! 

जिसके करुणामयी नजर से,
अधम पतित तर जाता है! 
जिससे हम सरे जीवों का,
सेवक-स्वामी सा नाता है!
जग के उस सृजनहार को,
हो कृतज्ञ हम नमन करें! 

राजीव रंजन मिश्र
२६/०६/२०१२

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