घर के बड़े -बूढ़े,
गर सोच के देखा जाय तो,
पेड़ की डाली से लटके हुए,
पके आम की तरह ही होते हैं!
एक ओर,
अगर सम्हाला जाय,
उन्हें हर तरह से,
प्रकृति के झंझवातों से,
तो नित नये रूप से,
स्वाद दिलाते हैं,
एक सुघड़ व रसीले,
जायके की!
और,दूसरी तरफ!
एक मामूली से,
पत्थर की ठोकर भी,
काफी होती है,
उन्हें मजबूर हो,
समय से पहले,
टपक कर गिर जाने को!
कुसमय,अधपके रूप में टूटकर,
सुनसान कर गुलशन से चले जाने को!
---राजीव रंजन मिश्र
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