हर डेग पर खहरैत आस-भरोस
दिनानुदिन क्षीण परईत आवाज
कि याह नहि थिक आजुक
हमरा लोकनिक बिखड़ल समाज?
हरेक मुद्दा पर ईच्छाशक्तिक कमी
आ बात-बात पर कुतर्कक स्वभाव
बस अप्पन घर टा रहय बाँचल
कि नहि थिक मनुक्खताक अभाव ?
अपनहि टा लेल जिबय के सोच
दूर-दूर तक हरायल जन-आस्था
किछु नाम मात्रक क्रिया-कलाप
कि याह नहि थिक आजुक संस्था?
जे मिलबैत रहैत सदिखन हाँ में हाँ
ओहि दस गोट संग रहबाक प्रवृति
जन-उत्थानक नाम पर नोच-खसोट
कि नहि बनि गेल अछि अप्पन वृति?
हाँ यौ हाँ! छिरिया गेल अछि अपन समाज
कत्तहूँ स कोनो नै उठि रहल अछि आवाज
जौ उठति अछि त दबा देल जाइत अछि
चारि गोटक समूह संस्था कहाइत अछि
समयक मांग थिक जे संगठित भ धाबी
छोड़ि भभटपन जनमानस के संग लाबी
दैब जौ पठौला मनुक्ख बना धरती पर
त परिभाषित मनुक्खक समाज बनाबी
राजीव रंजन मिश्र
०६/०७/२०१२
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