मानस पटल पर छायी सोचों को सारा दिन मै संजोता हूँ
शब्दों से फिर सींच उसे सुनी रातों में कागज पर बोता हूँ
शब्दों से फिर सींच उसे सुनी रातों में कागज पर बोता हूँ
कैसी है मेरी ह्रदय कल्पना और कितनी है भाव प्रवीन सोच
है मुझे नहीं यह ज्ञान आप विज्ञ जनों के आशाओं में होता हूँ
वजह विषय प्रेम और आत्मसुख है,बंधू मेरे कविता लेखन का
दो चार कलम लिखने को हरेक खट्टी मीठी यादों में खोता हूँ
भवरें के सरिस मै घूम घूम नित जीवन की खिलती बगिया में
यथाशक्ति चिन्हीत कर प्यारी कलियों की माला एक पिरोता हूँ
गर रखे आप कुछ उचित विचार तो खुले दिल से है स्वीकार मुझे
प्रक्षालित कर उस ज्ञान नीर से भावनाओं की चादर को मै धोता हूँ
हो कविताएँ भाव सचेतन और जगत हो सरस पद्य की निर्मल धारा
मांग यही वरदान सतत प्रभु परमेश्वर से नित सुख सपनो में सोता हूँ
राजीव रंजन मिश्र
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