उठते है कहाँ से भाव-तरंग!
मिलते है कहाँ से उत्प्रेरण !!
आते हैं, कहाँ से सोच नये!
ढलते कैसे शाब्दिक साँचो में !!
कैसे,किस कारण,क्यों कर के!
लिख जाते,कागज के पन्नों पर!!
ये राज भला कोई जाने क्या!
शायर दिल को पहचाने क्या!!
यह क्षण-प्रतिक्षण,संयोजन है!
मन आवेशित,चिर वेदन है!!
जो भरा परा है, भावों से!
वह मूर्त रूप,अन्वेषण है!!
हो चित्त-चिंतन से, पिरन जो!
वह शूल,भला कोई जाने क्या!!
ये राज भला कोई जाने क्या!
शायर दिल को पहचाने क्या!!
हो सुबह,सुनहरी मतवाली!
या रात की चादर अंधियारी!!
मन झूम उठे, स्वंय हो विह्वल!
खिल उठे हर-एक,क्यारी-क्यारी!
खिलते हों नव-नित, फूल जहाँ!
वो बाग़ भला कोई जाने क्या!!
ये राज भला कोई जाने क्या!
शायर दिल को पहचाने क्या!!
---राजीव रंजन मिश्र
१२.१०.२०११
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