जिंदगी में एक सफ़र की तरह चलता रहा हूँ मैं
जज्बातों को रिश्तों की तरह निभाता रहा हूँ मैं
रास्ते तो चुन लिये थे बर्षों पहले ही हमने कभी
सोचा नहीं कभी भी क्या भला पाता रहा हूँ मैं
खुशियाँ भी आयी दर पे मेरे जिन्दगी की राह में
नम्र हो स्विकारना दिल को सिखलाता रहा हूँ मैं
गम के कै सौगात भी मिलते रहे हैं बराबर हमें
मान कर प्रभु प्रसाद गले से लगाता रहा हूँ मैं
जीवन सफ़र होती है एक बहती हुई दरिया सरिस
सुख दुःख को पुलिने समझ कश्ती खेता रहा हूँ मैं
गर बाँटने को बोला गया तो कोशिश रही बाँटू हँसी
गम के अश्कों को सदा छुप छुप के पीता रहा हूँ मैं
"राजीव" क्या रखा है भला जमाने भर की बातों में
लगा नित ध्यान प्रभु चरणों में बस जीता रहा हूँ मैं
---राजीव रंजन मिश्र
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