बाल गजल -७
आइ सँ ३०-३५ बर्ष पहिले ,जखन नेंन्ना भुटका रही त दाईयक मुहें २टा पांति सुन ने रही जामुनक गाछ तर बैसि,नै जानि कोना ईयाद परि गेल आ कि फुरायल जे चेष्टा कैल गेल पांति में पांति जोरि कए पूराबै के,प्रस्तुत अछि अपने लोकनिक समक्ष, भ सकैत अछि पहिल २ पांति बहुत गोटे के चिन्हल बा सुनल सन बुझबा में आबे... जौं से त जरुर अप्पन ईयाद साझा करी,हम सिरोलिया बा सिरोहिया में ससंकित छी ताहू पर अपने लोकनिक प्रतिक्रियाक बाट जोहब :
मैना के बच्चा सिरोलिया रे दु गो जामुन तू खसो
काँचे खसेबां त मारबौ रे दु गो पाकल तू खसो
गाछी में पुरना जामुन केर गाछ छैक फड़ल
बेरिये स ताकि ताकि बौआ छै लिलोहल तू खसो
दिन दुपहरिया जामुन ला कानय बिलखय
तोरे भरोसे संचमंच छै दु गो चीखल तू खसो
गीत गाबि बौआ तोरा निहोरय छौ ललगर ने
खुब करियक्का टुभ-टुभ रस भरल तू खसो
कहय छौ ढेप मारि कहियो ने खोता उजारतौ
'राजीव' भरि पोख दहीं सभ डभसल तू खसो
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१८)
राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment