अपन सोच सँ समाज के नै जगा पैलहूँ त की कैलहूँ!
अपन कर्म सँ समाज के नै उठा पैलहूँ त की कैलहूँ!!
घटना पर तर्क-कुतर्क त सब करैत छैक आ करतय!
धधरा बनि इन्कलाब नै जगा पैलहूँ त कि कैलहूँ!!
अपन लगन सँ,दिक्कत नै मोडि पैलहूँ त की कैलहूँ!
अपन वचन सँ,विरोध नै तोडि पैलहूँ त की कैलहूँ!!
आगि में पानि त सब ढारबे करैत छैक मुदा!
जौं पानि में आगि नै लगा पैलहूँ त कि कैलहूँ!!
ई नै बुझु जे दिक्कत कहियो कम छल हेतय!
वरंच कनी सोचु जे ओ केहन वीर छल हेतय!
पारिस्थितिक वश में भ नै जे फ़र्ज़ सँ हटल हेतय!
दुनिया में जकर सोच चट्टान सन अटल हेतय!!
भीड़ में रहितो जे सदिखन भीड़ स विरल हेतय!
बिर्रो-तूफां सँ डरा ने जे कखनो थम्हल हेतय!
युग कोनो भी कियाक नै रहल होय सरकार!
वैह वीर सभ दिनका शाहंशाह रहल हेतय !!
---राजीव रंजन मिश्र
२७.०५.२०१२
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