गजल -१७
बिगड़ल छै एहन कपार नोर कए
तोड़ने नहिं टूटल देबार नोर कए
सए चेहरा निर्दोषक देखै क भेटत
सुनि कए देखब जौं विचार नोर कए
लोकक सक्कत मोन किएक ने पिघलै
पाथरो क काटैत छैक धार नोर कए
मुस्कीक गामे बसोबास छैक जिनकर
ओ किएक बुझि पैता गोहार नोर कए
रहितो अन्हार सभके चीन्ह गेल हम
सिखैल पाठ नै भेल बेकार नोर कए
मोने जिनक छन्हि भेद भाब स भरल
कहियो कि कए पैता सत्कार नोर कए
"राजीव" सभक्यौ लूटय मजा गरीबक
किनको बुत्ते ने भेल सम्हार नोर कए
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१५)
राजीव रंजन मिश्र
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