हिंदी गजल
दिन हमें सोने नहीं देता और रात हमें जगाती है
दिन कुछ भूलने नहीं देता और रात याद दिलाती है
दिन भर का मारा जब हम लौट के घर को आतें है
तो रात हमे उत्प्रेरित कर होठों पर बातें लाती है
दिन देता प्रति क्षण उत्साह हमे कुछ करने को
आगोश में लेकर रात हमे निज अंक सुलाती है
थक हार ज़माने के गम से जब होते हैं हम उद्वेलित
रात प्रेयसी बनकर हाथों में जाम लिये आ जाती है
दिन संघर्ष का द्योतक और रात है देती गति विराम
रात्रि की निश्छल नीरवता ही चंचल मन को भाती है
"राजीव"निश्चिन्त हो लोग रहें चाहे राजा हो या रंक
गोधुली के ढलते ही निद्रारथगामिनी जब आती है
राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment