संसारक ई
रीति सब अजीब
बुझाइत छै
सब लागल छैथ
समरथ के पाछू !
नहि भान छै
नै प्रयास कोनो जे
करी एहन
जे किछु नब होय
रचनात्मक काज !
बुझाएत ई
झूठक अभियान
मुदा याह टा
कल जोरि विनम्र
अनुरोध सब स !
मनुक्ख छी यौ
किछु त करी हम
जे आबय छै
मनुक्खक रूप में
परमात्माक सोच !
दैवक घर
देर त छैक मुदा
अन्हेर नहि
भरोस राखी हम
ठीक हेतै सबटा !
राजीव रंजन मिश्र
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