गजल (३)
इ जोश आ भरास भगवान बचाबथि
कैल एतेक रास भगवान बचाबथि
बात करी सब चिन्गी लह्काबय केर
मोन सँ ने उच्छास भगवान बचाबथि
देखल हम ढहैत पहारो के अहि ठा
जौ रेत में छी बास भगवान बचाबथि
भोर होइत छैक राति बितलाक बाद
पूरय ने जौ आस भगवान बचाबथि
कहय राजीव आशीर्वाद में दम छैक
राखी ने मिट्ठ भास भगवान बचाबथि
(सरल वार्णिक वर्ण-१५)
राजीव रंजन मिश्र
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