" जख्म तो भर ही जायेगा जालिम"
दिल को रखें हम कुछ इस कदर ,
सोचों के सख्त साचें में ढालकर!
कोशिशें लाख भी की जाये मगर,
मन नाचे ना कोई सुर-ताल पर!
चोट खाए जिगर भले लाख गहरा,
हँस ना पाये कोई सूरत-ए-हाल पर!
जख्म तो सभी भर ही जायेंगे जालिम,
तालिम-ए-जख्म को रखें सम्हाल कर!
दिल में ख्वाईश का होना नहीं है बुरा,
गर हल्की लकीरें खिंची रहे गाल पर!
देने वाले खुदा ने सबको दिया है बराबर,
बस शिद्दत से अरमानो को रखें पाल कर!
----राजीव रंजन मिश्रा
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