हिंदी गजल
कर्म करें हम जैसा बस वैसा ही फल पाते हैं
सोचें ठंढे दिल से क्यूँ इन्सां हम कहलाते हैं
एक सुनहरी रंग मंच है यह दुनियाँ प्यारी
हर एक ढलते पल में किरदार बदल जाते हैं
पल भर में उत्साह अगले पल में ख़ामोशी
जीवन की कश्ती भव में हिचकोले खाते हैं
रहते सफेदपोश बन करते हैं काला बाजारी
अपने मीठी बातों से वो लोगो को भरमाते हैं
सुखदेव,राजगुरु व भगत सिंह क्यों याद रहे
नव युग में अतीत भूलाके वैलेंटाइन मनाते हैं
कुछ लोग निर्लज्ज हो लूटते कफ़न लाश से
वो लोगों के खातिर गले से कफ़न लगाते हैं
है शत शत कृतग्य नमन उन वीरों को "राजीव"
निस्वार्थ मातृ भूमि खातिर जो शीश चढाते हैं
राजीव रंजन मिश्र
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