गजल ३०
सभ किछु सोचि हारल छी
अपने मोनक डाहल छी
बड्ड देखल लोकक बानि
हियाउ छोरिक भासल छी
जूरा सभकँ चलल हम
मुदा करेजक मारल छी
दैव घर ने अन्हेर छैक
याह टा भरोस राखल छी
रौदी धाही ने सभ दिनका
कष्टक दिनत' गानल छी
सुख-दुःख छांह रौद जकां
सुधि लोकनिक भाखल छी
"राजीव"अछि संतोष राखि
तैं यौ सरकार बाँचल छी
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१०)
राजीव रंजन मिश्र
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