गजल ३३
आँखिक पिपनी झुकल सन
गालक लालिम रंगल सन
स्नेह पर ककरो ने चलल
मोन लगै अछि बेकल सन
झुकल नैन उठैब हूनक
तीर चलाबै मारल सन
हिरनी सनकँ चालि चलैथ
आँखि रहै छैक फारल सन
केश हुनक डाँर तक झूलै
बुझाय मोन छै बान्हल सन
देखि हूनक लटक झटक
साधु संत सब डोलल सन
"राजीव"हमहूँ छी मनुख यौ
कखनो क' छी बहकल सन
(सरल वार्णिक बहर.वर्ण-११)
राजीव रंजन मिश्र
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