जिक्र उनकी हुयी जो महफिल में
इक कसक सी उठी मेरे दिल में
सोये अरमां उठे ललायित हो
कोई जज्बा नहीं थे संगदिल में
मैं वो नादां था ऐ मेरे मालिक
जिसका था एतबार कातिल मेँ
किसको कहते जफा,वफा क्या है
फर्क का इल्म नहीं था काबिल में
किसको हासिल हुयी है क्या राजीव
क्यों लगा है किसी के हूक्म तामिल में
(.......बात जब भी उठी बहारों की)
राजीव रंजन मिश्र
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