गजल २८
आइ काल्हिक ई महगाई देखि लोक मरि गेल
ककरा कोना कहत फेर करेज हहरि गेल
झटकासँ एक बेरक ठाढ़ भेल छल कहुना
अहि बेरक धक्कासँ पीठक रीढ़ लचरि गेल
कहियोत' छल सोनक चिरै याह देश भारत
लूटल मुदा अप्पनक घोर दर्दे हकरि गेल
देखलासँ बुझि परत नेबो जेना छै निचोड़ल
भ्रष्टक हाथे परिक' सभटा शोभा उतरि गेल
सोचबाक गप्प ईहो छी हम कोनो अलग रही
धधरा में हाथ सेकिक' चोर चोर चिकरि गेल
नेताक' दैथ गारि खूब अप्पन ने चांकि किनको
लागल हाथ जकरा जत्तः ओतय सम्हरि गेल
अन्ना कि रामदेव, अरविन्द बा किरण होइथ
सत्ताक हाथे परिक' सभकँ बोल घुसरि गेल
डिजलक जे दाम बढल चोट छल कसगर
बंदीक नाम सुनिते मुदा भविष्य ठहरि गेल
"राजीव"कँ नजरि में ने दूर तक उपाय कोनो
भ्रष्टाचार रोग मारुक चहुँ दिसि पसरि गेल
(सरल वर्णिक बहर,वर्ण-१८)
राजीव रंजन मिश्र
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