गजल २३
कहियो अहि माटि पर पूजल जैत छली नारी
अइयो धरि घर कए सम्हारैत रहली नारी
रहल सभ दिन एक्कहि टा रूप नारी कए यौ
सहल सभ पीर चुप्पे कहियो ने तनली नारी
कहियो सजाओल जैत छल देह पर गहना
आजुक समाज में मुदा सभ रुपे लूटली नारी
जन्म लेली माटि सए जाहि देश में जनकसुता
ओहि ठाम कुकृत्यक कारने लाजे गरली नारी
ओहि ठाम कुकृत्यक कारने लाजे गरली नारी
ओइल सधेबाक नव रूप देखबा में आयल
अंग अंग कटवा कए धरा पर खसली नारी
जानकी द्रौपदी अहील्या अनसुईयाक गाम में
नित सभ तरहे कष्टक मारल सीझली नारी
"राजीव"जगाबैथि अहि माटिक माय बहिनकँ
कहिया धरि सहती सभटा बनि पुतली नारी
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१८)
राजीव रंजन मिश्र
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