किस किस से मैं बैर करूँ अब मेरे वश की बात नहीं
बहुत लगें हैं चोट जिगर पर और नया आघात नहीं
कौन सुने अब इन किस्सों को और उठाये नाजो नखरे
दिल-ए-नादान के जज्बातों के आज सही हालात नहीं
कश्ती जो उतारी थी हमने सागर के मचलते लहरों में
तूफान से सीना टकराया,थे कौन यहाँ मुश्किलात नहीं
मशगुल रहा करते थे हर पल दुनियां भर की बातों में
हाले चमन के क्या कहने थे डाल मगर कोई पात नहीं
"राजीव" न रहना बुत बनकर पर गर्व भरी ना बातें हों
बुजदिल जीतेंगे समर भूमि को उनकी ये औकात नहीं
राजीव रंजन मिश्र
20.11.2012
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