उनका आना यूँ कहो कि गुलशन को सजा गयी
उनके जाने से लगा जैसे फिजा सी छा गयी
उनके जाने से लगा जैसे फिजा सी छा गयी
नजरों का उठना मैकदों को दे गयी चुनौतियाँ
पलके उठाकर फिर गिराना दिल जिगर चूरा गयी
पलके उठाकर फिर गिराना दिल जिगर चूरा गयी
लब का खुलना यूँ लगे जैसे बजे शहनाईयाँ
उनकी चुप्पी या खुदा दिल पर कहर सी ढा गयी
उनकी चुप्पी या खुदा दिल पर कहर सी ढा गयी
संगमरमर सा बदन और नजाकत हुस्न की
महफिल में उनकी पेशगी बस कयामत आ गयी
महफिल में उनकी पेशगी बस कयामत आ गयी
“ राजीव" उल्फत चीज ही है पेचीदगी भरी हुयी
दीवानगी का आलम ना पुछो जीन्दगी शरमा गयी
दीवानगी का आलम ना पुछो जीन्दगी शरमा गयी
राजीव रंजन मिश्र
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