Wednesday, December 12, 2012

जिंदगी के सफ़र में जो मेरे हमराह हैं 
जाने क्यूँ नाराज़ वो इस कदर खामखाह हैं

फासला बढ़ता गया हर कोशिशों के बावजुद 
अब तो ढूंढे हल न दिखता टेढ़ी-मेढ़ी राह हैं 

ऐ खुदा मुझको बता किस बात से है वो खफा 
इक बार तो ये जान लूं कि वो कौन सा गुनाह हैं

जन्नत मिले उनको जिन्हें थी आरजू उस बात की 
चंद लम्हें पाऊँ सुकूँ के बस यही एक चाह है 

क्यों मुन्तजिर बैठा है तू पलके बिछाये राह में
मिलता नहीं है हर किसी को "राजीव"वाह-वाह है 

राजीव रंजन मिश्र 
20.11.2012  

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