गजल २१
बात सब क्यौ करैथ दुनियाँ सुधारयकँ
काज क्यौ नहिं करैथ दुनियाँ सजबयकँ
कहैथि सभ क्यौ ई अहि रुपे हेबाक चाही
करैथि क्यौ नहिं मुदा जौं अपने करयकँ
दोष सब प्रशासन आ सरकारक सौंसे
कर्म अपन मुदा क्यौ नहिं चाहै देखयकँ
कठिन सँ कठिन काल चुप्प भए रहैथि
मोन फरकनि ने सोचि कखनो लरयकँ
ककरो पाछू थपरी बजेने की भेटत यौ
जरुरत छी आवाज मोन सँ उठबयकँ
बिन मंगने मायो ने पियाबथि नेन्ना कए
हम बैसल ठाम सोचै कोना छी पाबयकँ
आउ जगाबी अपन हिया खूबक' खखोरि
निष्पक्ष मोन जे कहै ताहि रुपे चलयकँ
मोन अयना थिक सरकार झूठ ने बाजै
हमहीं दबा दी मनोभावे ने छी मानयकँ
कहय "राजीव" समयक मांग छैक मीता
डाँर कसि सहेटि आब डेग बढबयकँ
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१६)
राजीव रंजन मिश्र
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