गजल २६
हाथक चोटत' हल्लूक होइ छैक
बातक चोटत मारुक होइ छैक
किछु लोककँ परै कोनो असर ने
किछु ला बाते टा चाबुक होइ छैक
समय रहैत जे चेतल सैह ने
सभ रूपे बूझनहूक होइ छैक
फूँकि फूँकि कए चली सभ तरहे
नेह कठिन बड्ड आजूक होइ छैक
ताकी ऊप्पर नीचा अगल बगल
नहिं देखल से उल्लूक होइ छैक
जुनि रही आंखि मूनि बैसल ठाम
ई त' काज कर्मजरूक होइ छैक
"राजीव" बूझै छै रीति जगत केर
देखि सुनि बड्ड भावूक होइ छैक
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१३)
राजीव रंजन मिश्र
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