Tuesday, December 18, 2012


जीवन में हालात हमेशा खेल गजब दिखलाती है
कभी हंसाये कभी रुलाये और कभी तड़पाती है 

हँसते मुस्काते हम अक्सर रहते बेगाने कल से 
पलक झपकते हालातें बेदम हमको कर जाती हैं

दिखे निरंतर लोग लगे कुछ बेहतर कर जाने में 
मगर बङे ही मीठे ढंग से नियति सदा चौंकाती है

है कौन यहाँ जो बतलाए,क्या छिपा हुआ अगले पल में
यह कालचक्र तो सदियों से मानवता को भरमाती है

क्या रजा क्या रंक यहाँ हाल सभी का एक सामान 
ऊँगली पर हालात सभी को जमकर नाच नचाती है 

हालातों पर नहीं रहा है "राजीव" कभी भी वश अपना 
नियति को मान कर चलना अकलमंदी कहलाती है 
राजीव रंजन मिश्र

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