हों अमीर या गरीब के दिखने में तो एक सा ही होते हैं आँसू
इतेफाक की बात है मगर कभी हँसते तो कभी रोते हैं आँसू
एक अदद सी बूंद भी किसी के आँखों की जलजला सा लाये
हासिल हुई ना कुछ भी उन्हें रो-रो कर बस्ती डुबोते हैं आँसू
है बदनसीबी शुमार जिनके हालत ए जिन्दगी में बरखुरदार
वो गुजरते हुए हर एक पल में बड़ी संजीदगी से बोते हैं आँसू
मुस्कुराहटों की बस्ती में रहा है सदा से निवास जिनका यारों
भला वो क्या समझ सकेंगे क्या पाते और क्या खोते हैं आँसू
बेरहम दिल पर कभी होता नहीं है असर बिलखने का किसी के
संवेदनशील लोगों को मगर अक्सर तेज़ खंजर चुभोते हैं आँसू
हालत-ए जीकर भी करना निहायत बेमानी है आज के दौर में
बेवशी के आलम में हर कदम पर खून की घूंट पी सोते हैं आँसू
ये बात और है कि खुदा ने किसके मुकद्दर में क्या लिख रखा था
नफ़रत में हो या मोहब्बत में आँखों को सदा ही भिगोतें है आँसू
छोड़ "राजीव" तू इस कदर भला क्यूँ करता है दिलखराश अपना
मत भूल हरेक जख्म-ए-तालीम को बड़े शिद्दत से संजोते है आँसू
राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment